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Friday, January 13, 2012

BHHOKH

मैं भूखा हूँ ,
भूख मिटाने को,
लिखता हूँ ,
फिर मिटा देता हूँ,
क्यूँकि
अपने लेखन में मुझे ही ,
नजर आते हैं खोट ,
भूख और बढ़ जाती है ,
दौड़ पड़ता हूँ
आसपास बहते
काव्य के सागर की ओर,
कुछ बूंदे भरता हूँ,
मुग्ध होता हूँ  पढ़ कर,
जो मेरी सोच से ऊपर ,
बहुत ऊपर है ,
लौटता हूँ और,
फाड़ देताहूँ
अपना ही गन्दा किया हुआ पेपर

सोचता हूँ एकांत में में ,
कैसे इन कवियों की सोच
ऊपर ,इतनी ऊपर
चली जाती है ,
गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध भी ,
छितिज के पार,
और जब पढो तो,
डूबता है आदमी
उतना ही नीचे
गहरे और गहरे
भावो के सागर में ,
सम्मोहित और जडवत

इस तरह
पूरा हो जाता है
न्यूटन की गति का तीसरा नियम
लिखने से पढने तक .

जैसे ,
डगमगा गया है
आत्मविश्वास मेरा ,
या ,जकड गया हूँ
उन पंक्तियों के सम्मोहन में यूँ
की इस स्तर के नीचे ,
अब कुछ भी भाता नहीं ,
शायद अब
जायका बदल गया है मेरा

इसलिए  लिखता हूँ ,
फिर  फाड़ देता हूँ,
अपना ही गन्दा किया हुआ पेपर . 

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