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Monday, January 30, 2012

इत्तेफाकन एक ही समय में ,एक ही विषय पर दो गुनीजनो के विचार पढ़े .शायद हमारे जैसे युवा माता पिताओ के लिए काफी प्रेरक है आज की आक्रामक युवा पीढ़ी पर हम अपने सपने नहीं लाद सकते.मोहन श्रोत्रिय जी ने युवा पीढ़ी का बेबाक प्रश्न रखा है .........  Mohan Shrotriya
तीनों बच्चों-- दो बेटियों और एक बेटे-- ने कहा "पापा, आप अपने सपनों को हमसे पूरा क्यों करवाना चाहते हैं? आपने सपने देखे, अपने लिए, और पूरे हमसे करवाना चाहते हैं, यह ठीक नहीं है. हम नहीं कहते कि आपको सपने नहीं देखने चाहिए थे. देखते, और देखते, पर उन्हें पूरा करने का हौसला भी आपका ही होना चाहिए था. आप विफल रहे उन्हें पूरा करने में, और अधूरे सपनों की पोटली राख देना चाहते हैं हमारे कंधों पर. This is not fair. हर पीढ़ी को अपने सपने देखने चाहिए. यह हर आगे वाली पीढ़ी का अधिकार है. सपनों में वंश-कुल नहीं चलता. नहीं चलना चाहिए." इस संवाद के चारों पात्रों में, मैं कहीं नहीं हूं. संवाद वास्तविक है. ज़ाहिर है, बच्चे तो नहीं ही बताते मुझे. तो जो बचा, उसीने तो कहा होगा.

इसी सन्दर्भ में अंजू जी ने युवा पीढ़ी के साथ बेहतर ताल मेल बनाते बहुत ही सुंदर ढंग से लिखा है .......

नहीं मत झुकाओ अपने कंधे
हमारी आशाओं के बोझ तले
और मत चुनो पूर्वाग्रहों के मील के पत्थरों 
से सजी तयशुदा राहें
उठो और चुन लो खुद अपने रास्ते
जो दौड़ेंगे खुद मंजिल की ओर,
चाहो तो ले लो मशालें हमारे अनुभव की,
जो दिखाएंगी तुम्हे अंधेरों में भी रास्ते,

और दोनों को मिला के देखे तो युवा माता पिताओं के लिए यही सन्देश है की हम अपने बच्चो के  सपनो के हिसाब से खुद को तैयार करे उनके सपनो की मंजिल तक पहुचने  का मार्ग बनाये बड़े उदार हो केर उन्होंने लिखा है ...चाहो तो हमारे अनुभव की मशाल ले लो ............. युवा माता पिताओ के लिए  शायद यही महत्वपूर्ण उपलब्धि हो कि वो अपने बच्चो को अच्छे सपने देखने कि आदत डलवा सके ..........
         मेरा सौभाग्य  मुझे इतना सुंदर पढने को को प्राप्त हुआ          

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